डब्ल्यूसीएल पाथाखेड़ा की छतरपुर टू खदान 30 मार्च को अंतिम उत्पादन की 

डब्ल्यूसीएल पाथाखेड़ा की छतरपुर टू खदान 30 मार्च को अंतिम उत्पादन की 

31 वर्ष कोयले का उत्पादन करने के बाद यह खदान हो जाएगी बंद

 

सारनी।वेस्टर्न कोलफील्ड लिमिटेड पाथाखेड़ा की छतरपुर टू खदान 30 मार्च 2024 को बंद होने की तैयारी की जा रही है। यह खदान सन 1992 में मुहाना शुरू किया गया था और 1993 से इस खदान से लगातार कोयले का खनन किया जा रहा है,यह खदान 31 वर्ष तक लगातार कोयले का खनन करते हुए 45.5 लाख मिलियन टन कोयले का उत्पादन करने का रिकॉर्ड कीर्तिमान करने का कार्य किया है।खदान के बंद हो जाने से 149 कर्मचारियों को एक खदान से दूसरे खदान में पहुंचने का कार्य किया जाएगा।एक के बाद एक खजाने बंद होने का सिलसिला बदलते जारी है जबकि कोयलांचल क्षेत्र पाथाखेड़ा में नई कोयले की खदान खुलेने की संभावना केवल कागजो और आश्वासन पर ही दिखाई दे रही है जिसकी वजह से क्षेत्र के लोगों में जनप्रतिनिधियों के प्रति आक्रोश का माहौल दिखाई दे रहा है।

23 साल में एक भी भूमिगत खदान पाथाखेड़ा में खुलवाने में सफल रहे जनप्रतिनिधि

पाथाखेड़ा क्षेत्र में तवा टू खदान से 2001 से कोयले का खनन शुरू किया गया उसके बाद क्षेत्र में एक भी कोयले की खदान की सौगात नहीं मिल पाई बल्कि एक के बाद एक करके भूमिगत खदान के बंद हो जाने के कारण क्षेत्र में मायूसी और पलायन का दौर निर्मित हो गया है। इससे भी दुखद बात तो यहां है कि सन 1996 से बैतूल हरदा हरसूद संसदीय क्षेत्र में भारतीय जनता पार्टी के सांसद होने के बाद भी भाजपा के किसी भी संसद में क्षेत्र में नई कोयले की खदान की सौगात दिलाने में सफलता प्राप्त नहीं की जबकि प्रदेश और केंद्र में भाजपा की डबल इंजन की सरकार रहने के बाद भी लोगों को फाके की स्थिति से जूझना पड़ रहा है इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि बैतूल जिले में जनप्रतिनिधियों की क्या स्थिति बनी हुई है जो जनप्रतिनिधि क्षेत्र में एक भूमिगत कोयले की खदान खुलवाने में सफल नहीं हो पा रहे हैं ऐसे लोगों से क्षेत्र में विकास की गंगा बहाने का सपना दिखाना आईने में चमचमाती सूरत और जीवन में लग्जरी जीवन दिखाने के जैसा प्रतीक होता दिखाई दे रहा है।

कब-कब हुई क्षेत्र में भूमिगत खदाने बंद

कोयलांचल क्षेत्र पाथाखेड़ा का यदि इतिहास देखा जाए तो सन 1962 में कोयलांचल क्षेत्र पाथाखेड़ा को बसाने का कार्य किया गया और तत्कालीन समय में पीके लन खदान 16 मई 1963 को इसका भूमि पूजन किया गया और जुलाई 1963 से पीके वन खदान से कोयले का खनन करने का कार्य जारी रखा गया क्षेत्र की मदर माइंस कहे जाने वाली पीके वन खदान से लगभग 46 वर्ष तक कोयला खनन करने के बाद 29 अगस्त 2009 को यह खदान बंद कर दी गई। जबकि पीके टू खदान एक मई 1971 को शुरू हुई और इस खदान से लगभग 40 वर्ष तक कोयले का खनन करने के बाद 14 जून 2011 को इस खदान से कोयला खनन करना बंद कर दिया गया। जबकि सतपुड़ा वन खदान सन 1970 शुरू की गई 26 वर्षों तक इस खदान से कोयले का खनन करने के बाद 10 दिसंबर 1996 को यह खदान बंद कर दी गई जबकि सतपुड़ा टू खदान 20 जून 1973 को शुरू हुई और 8 मई 2013 को बंद कर दी गई इसके बाद शोभापुर खदान 21 फरवरी 1975 को शुरू की गई और 1 जुलाई 2021 को या खदान बंद हो गई सारनी माइंस खदान 21 सितंबर 1979 को शुरू हुई और 31 मार्च 2024 को  खदान बंद कर दी गई इसके बाद छतरपुर टू खदान 1993 में शुरू हुई और 30 मार्च 2024 को यह खदान से कोयले का खनन करना बंद कर दिया जाएगा 23 वर्ष में पाथाखेड़ा क्षेत्र की सात भूमिगत खदानें बंद हो गई लेकिन कोई भी जनप्रतिनिधि नई कोयले की खदान खुलवाने में सफल साबित नही हुए इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि प्रदेश और केंद्र में बैठे नेता केवल कागजों पर ही खदान खुलवाकर वह वही बटोरने का काम कर रहे हैं धरातल पर भूमिगत खदान सफेद हाथी साबित होते दिखाई दे रही है।

इनका कहना है

क्षेत्र में जल्द ही तवा थ्री खदान का भूमि पूजन किया जाएगा इसको लेकर अंतिम तैयारी की जा रही है नई इकाई की भी सौगात जल्द ही क्षेत्र को मिलेगी।

रजीत सिंह विधायक प्रतिनिधि सारनी

प्रदेश और केंद्र में भाजपा की सरकार होने के बाद 23 साल में एक भी भूमिगत खदान की शुरुआत नहीं कर पाए 23 साल में सात भूमिगत खदानें बंद होने के कारण इस क्षेत्र से पलायन का दौर युद्ध स्तर पर जारी है ऐसे में कब खदान और इकाई खुलेगी इसको लेकर सत्ता पक्ष का कोई भी नेता स्पष्ट कुछ कहने को तैयार नहीं है।

तिरुपति एरुलू प्रदेश कांग्रेस सचिव

 

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